ज्योति बसु के लिए - २
एक पेड़ का बयान
फूल से होते हुए
फल के पेट में पहुंचा
पकता रहा वहीँ
मुद्दत तक
एक दो- पहर
पेड़ का बयान
टपक कर
धूल में जा गिरा
आँखों में एक समझदार चमक लिए
बड़ी - बड़ी सफ़ेद और पीली
कीलों की नोकों पर
टिके ऊंचे दरवाज़े
थरथराने लगे
कबूतरों पर झपटने को
तैयार बिल्लियाँ
सोचने लगीं
हमलों के नए तरीकों के बारे में
वक़्त का एक छोटा सा टुकड़ा मिल गया
पेड़ के बयान को
कबूतरों की बंद आँखों को
आवाज़ देकर
उसने सिर्फ इतना कहा
' यह डरने का समय नहीं है
सोचने का समय है.'
कबूतरों की आँखों में
हरकत उभर आई है
यह बिल्लियों के लिए
अपशकुन से कम नहीं.