पत्ते प्रतिस्पर्धा करने लगते हैं जब जड़ों से
तब फसलें नहीं उगतीं
सवाल उबलते हैं खेत की आँखों में
बादल आते हैं गीले कपड़ों की शक्ल में
भेड़ों से बारिश का पता पूछते हुए
नदियों से डरने लगती हैं मछलियाँ
जंगल की डरावनी कहानियां सुनाने लगते हैं
रेत पर हवा के पैरों के निशान
सूखे तालाबों के संगठित आन्दोलन
फैसले करने लगते हैं बाढ़ के खिलाफ
दाने की तलाश में उड़ती चिड़िया
लड़ने लगती है युद्ध भूख के पक्ष में
विरोध की आवाज़ का गला काटने की
योजनाएं बनाने लगते हैं सियार
घास का हरापन फिर भी बचाना चाहता है अपने को
ताकि ज़िंदा रहें गीतों के बोल
बंजारों की बस्तियों में |