दीपावली : पाँच अनुभव (एक) प्रकाश की गतियाँ गु़ज़रती हैं मस्तिष्क से हवा खोल देती है सारे दरवाज़े खिड़कियाँ दीपों की तेजस्वी दुनिया में उछल-कूद मचाते बच्चे जोड़ते हैं किलकारियों के मेले शहर और गाँव की भेदक रेखा को सबसे बडी़ चुनौती देते हुए निश्शेष नहीं हुई है अभी मनुष्य बने रहने की संभावनाएँ॥ (दो) प्रकाश की भंगिमाएँ रचती हैं पुकारें भाषा के पार अर्थों की सीमाएँ खण्डित करते हुए घोंसले की नींद में सपनों की दुनिया रचते बच्चों को भावुक होकर निहारने के बाद टहनी पर आ बैठी चिड़िया सबसे पहले खोलना शुरु कर देती है नदी के भीतर आकार लेती अरुणाभा के अभिनव रहस्य ॥ (तीन) प्रकाश की लहरें टकराती हैं रात-दिन अनंत के तटों से तोड़ डालती हैं प्रकाश की लहरें अनंत के अदृश्य किनारों को एक और अभिनव अरूप अनंत रचने के लिए जहाँ कहीं ठहर जाती हैं यात्राओं की कल्पनाएँ वहीं बदलने लगती है सभ्यता खण्डहरों में॥ (चार) प्रकाश की ध्वनियाँ झाँकती हैं नक्षत्रों की आँखों में पहचानने के लिए अपनी परछाइयों की उभरती विलीन होती आकृतियाँ मन को बाँध लेता है तितली की उडा़न में आकाश का निमन्त्रण जलधर की उँगली थामे चला आता है इन्द्रधनुष ठुमक ठुमक बालकों की आँखों में शाम ढले जुगनू आवाज़ लगाते घूमते प्रकाश की ध्वनियों को ॥ (पाँच) प्रकाश के सैनिक हैं सूर्य और चन्द्रमा असंख्य ब्रह्माण्डों में ध्वज-वाहक प्रकाश के असंख्य सूर्य असंख्य चन्द्रमा पेड़ भी हैं प्रकाश के सैनिक और आदमी भी. प्रकाश की सेना का सबसे पहला सिपाही लड़ रहा युद्ध अंधेरे के विरुद्ध हर समय हर जगह ॥ प्रकाश-पर्व पर शुभकामनाएँ : देवराज |
शुक्रवार, 5 नवंबर 2010
दीपावली : पाँच अनुभव
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